Biography of Lata Mangeshkar in hindi

तालिबान का इतिहास क्या है ? पूरी जानकारी।

तालिबान के बारे में तो हम सभी ने सुना ही है हाल ही में तालिबान के द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया गया तभी से ही तालिबान सुर्खियों में हैं आज से पहले बहुत ही कम लोग तालिबान के बारे में जानते थे परंतु आज के समय में बच्चा-बच्चा तालिबान का नाम जानता हैं। बेशक लोगों को तालिबान का इतिहास नहीं पता और ना ही उन्हें यह पता कि तालिबान क्या हैं मगर तालिबान का नाम हर एक व्यक्ति ने सुना है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है।

15 अगस्त 2021 के दिन जब भारत में 75 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा था, तो उस समय तालिबान के द्वारा गाने स्थान को गुलामी की जंजीरों में जकड़ लिया गया और हैरानी कर देने वाली बात तो यह है कि अफगानिस्तान के वह फौजी जी ने अमेरिका के द्वारा इतने सालों से ट्रेनिंग दी जा रही थी वह भी तालिबान के आगे हार मान गए और अपने घुटने टेक दिए।

अफगानिस्तान की आर्मी के घुटने टेकतें ही “अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी” भी अपने साथ करोड़ों की संपत्ति लेकर देश छोड़कर भाग गए, मगर अफगानिस्तान की आवाम के बारे में किसी ने भी नहीं सोचा कि तालिबानी उनका क्या हाल करेंगे।

तालिबान कौन है और तालिबान इतना मजबूत कैसे बना ?

तालिबान के बारे में जानने के लिए हमें लगभग 30 साल पीछे जाना होगा 90 के दशक की शुरुआत में ही जब सोवियत संघ अफगानिस्तान देश से अपनी फौज को वापस बुला रहा था तो उस समय उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान तैयार हो रहा था। “तालिबान शब्द एक पश्तो भाषा” का शब्द है और इसका अर्थ ‘ छात्र ‘ होता है यह अफगानिस्तान की मूल भाषा भी है अफगानिस्तान के साथ-साथ यह भाषा पाकिस्तान के पेशावर में भी बोली जाती है जो कि खासतौर पर पठानों के द्वारा बोली जाती है।

जब 90 के दशक में तालिबान संगठन की शुरुआत हुई तो इसमें कुल 50 छात्र थे और यह सभी छात्र काफी कट्टरपंथ के थे जिन्होंने कट्टरपंथ के अपने खुद के ही कानून बनाए हुए थे। धीरे-धीरे इस संगठन से और भी ज्यादा लोग जुड़ने लगे जो कि कट्टरपंथ में विश्वास रखते थे वैसे तो तालिबान को बनाने के पीछे पाकिस्तान के साथ-साथ सऊदी अरब का भी नाम आता हैं, क्योंकि सऊदी अरब में भी इसी प्रकार के कट्टरपंथी लोग हैं जो कि काफी कट्टर कानूनों का पालन करते हैं।

तालिबान संगठन ने धीरे-धीरे अपने आप को मजबूत किया और तालिबान के साथ काफी कम समय में ही काफी ज्यादा लोग भी जुड़ गए जो तालिबान संगठन के लिए अपनी जान भी बड़ी आसानी से दे सकते थें। वर्ष 1994 में तालिबान के द्वारा कंधार , 1995 में हेरात तथा 1996 में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के ऊपर अपना कब्जा कर लिया और फिर धीरे-धीरे सन 1998 आते-आते पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान ने अपनी हुकूमत कर ली थी।

तालिबान लोगों को क्यों नहीं पसंद ?

तालिबान की सत्ता लोगों के द्वारा इसीलिए ना पसंद की जाती हैं क्योंकि यह लोगों की आजादी को पूरी तरह से खत्म कर देते हैं जब अफगानिस्तान पर साल 1996 में तालिबान ने कब्जा कर लिया था तो उस समय इन्होंने तालिबान पर कब्जा करके वहां पर बहुत ही सख्त कानून लागू कर दिए जिसके तहत पुरुषों को लंबी दाढ़ी रखनी होगी, महिला हमेशा बुर्खा पहने रखेगी और महिलाएं कभी भी नौकरी नहीं कर सकती।

इसके अतिरिक्त तालिबान के द्वारा गाने स्थान में सिनेमा , संगीत , टेलीविजन , इंटरनेट आदि सभी सुविधाएं बंद कर दी गई थी इंटरनेट की सुविधाएं केवल तालिबान संगठन से जुड़े लोग ही इस्तेमाल कर सकते थें। इसके अतिरिक्त तालिबान के द्वारा 10 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियों को स्कूल जाने पर भी रोक लगा दी गई। इसीलिए आज लोग तालिबान से काफी ज्यादा नफरत करते हैं मगर जो कट्टरपंथी लोग हैं वह तालिबान को पसंद करते हैं।

पूरी दुनिया के सामने तालिबान कब आया ?

साल 2001 में तालिबान संगठन के द्वारा बामियान में हजारों साल पुरानी भगवान बुद्ध की मूर्ति को तोप से उड़ा दिया गया और उसके पश्चात 11 दिसंबर 2001 को अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर एक बहुत ही दर्दनाक घटना हुई जिसने अमेरिका के साथ-साथ पूरे विश्व को हिला डाला इस घटना का इल्जाम Osama bin Laden के आतंकी संगठन अलकायदा पर आया परंतु आतंकी संगठन अलकायदा के साथ-साथ उस समय अमेरिका के निशाने पर तालिबान भी आ गया था , क्योंकि ओसामा बिन लादेन के आतंकी संगठन के साथ तालिबानी भी मिले हुए थे।

तालिबान के सामने अमेरिका कमजोर कैसे पड़ा ?

इस दुनिया में अमेरिका को सबसे शक्तिशाली देशों में गिना जाता है लेकिन चौका देने वाली बात तो यह है कि अमेरिका ने तालिबानियों के आगे घुटने टेक दिए। अब इसका कारण यह है कि जब Donald Trump राष्ट्रपति बने थे तो उस समय उन्होंने तालिबान के साथ शांतिपूर्ण बातचीत करते समय समझौते की पहल की थी,

और इतने समय से इसीलिए अफगानिस्तान में भी शांति बनी हुई थी, लेकिन जब अमेरिका में Biden राष्ट्रपति बने तो तब भी अमेरिका अफगानिस्तान से वापस नहीं लौटी , तो इसी कारण तालिबानियों का गुस्सा और भी ज्यादा भड़क गया और उन्होंने बलपूर्वक अमेरिकी सेना के साथ-साथ अफगानी सेना के जवानों को भी मार कर पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया ।

अफ़ग़ान मिशन पर अमेरिका ने क्या कीमत चुकाई ?

जब तालिबानियों के द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा किया गया तो उस समय अमेरिका का भी काफी बड़ा नुकसान हुआ है क्योंकि अमेरिका ने अफगानिस्तान पर लगभग 61 लाख करोड रुपए खर्च किए थें क्योंकि अमेरिका के द्वारा अफगानिस्तान की फौज को काफी अच्छी तरह ट्रेनिंग दी गई थी और अमेरिका के लगभग 1 लाख सैनिक अफगानिस्तान आए थे जिसमें से लगभग 2400 जवानों की तो मृत्यु भी हो चुकी हैं।

इसके अतिरिक्त Nato Army के 700 जवानों की भी मौत हो चुकी है और 64000 अफगानी सेना सैनिक भी मारे गए हैं। अमेरिका अफगानिस्तान मिशन पर जितनी भी कीमती वस्तुएं अपने साथ लाया था जैसे कि हथियार , गाड़ियां , तोपे आदि इन सब चीजों पर अब तालिबान ने कब्जा कर लिया है और अमेरिका को खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ा।

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