सुभाष चंद्र बोस इतिहास के पन्नो में सुनहरे अक्षरों से दर्ज है। इनके नाम से लगभग सभी परिचित है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इनका भी काफी बड़ा योगदान रहा है। सुभाष चंद्र बोस ने ” तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आज़ादी दूंगा और जय हिन्द ’’ जैसे प्रसिद्द नारे दिए हैं। सुभाष चंद्र ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की। 1938 और 1939 मै कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। अंग्रेजों को देश से निकालने के लिए आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की।
सुभाष चंद्र बोस को नेता जी के नाम से भी जाना जाता है।
प्रारंभिक जीवन –
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 मै उड़ीसा के कटक शहर में हुआ। सुभाष चंद्र बोस के पिता जानकी नाथ बोस प्रसिद्द वकील थे इनकी माता प्रभावती देवी सती और धार्मिक महिला थी। प्रभावती और जानकीनाथ की 14 संताने थी जिसमे सुभाष चंद्र बोस नौवे स्थान पर थे। सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही पढ़ने में होनहार थे। कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कालेज से उन्होंने दर्शनशास्त्र में स्नातक डिग्री हासिल की। उसी दौरान सेना में भर्ती हो रही थी उन्होंने सेना में भर्ती होने की कोशिश की परन्तु आंखे खराब होने की वजह से अयोग्य घोषित कर दिया गया। अपने परिवार की इच्छा के अनुसार वर्ष 1919 में वे भारतीय सेवा के तैयारी के लिए इंग्लैंड पढ़ने गए।
कैरियर –
भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए 1920 में सुभाष चंद्र बोस ने आवेदन किया। इस परीक्षा को पास करने के साथ साथ चौथा स्थान भी हासिल किया। सुभाष चंद्र बोस जलियांवाला बाग के हत्याकांड से बहुत ब्याकुल हो उठे। 1921 में प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया। अपनी मेहनत के चलते कांग्रेस के मुख्या नेताओं में शामिल हो गए। 1928 में जब साइमन कमीशन आया था तब कांग्रेस ने इसका विरोध किया और काले झंडे दिखाए। सन 1930 के सीविल डिसओबिडेन्स आंदोलन के दौरान सुभाष चंद्र बोस को गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधी इरविन पैक्ट के बाद 1931 में उनकी रिहाई हुई।
व्यक्तित्व का विकास –
सुभाष चंद्र बोस पर अपने प्रिंसिपल बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव पड़ा इसके साथ ही उन्होंने स्वामी विवेका नन्द जी के साहित्य का पूरा अध्धयन किया। सुभाष चंद्र बोस के अंदर बचपन से ही देश भावना मौजूद थी।
द्वितीय विश्व युद्ध में साधनो के उपयोग का विरोध –
सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों द्वारा भारत के साधनो का दूसरे विश्व युद्ध में उपयोग करने का कड़ा विरोध किया। उनके इस आंदोलन का जनता का जबरदस्त समर्थन मिला। इसलिए उन्हें कोलकाता में कैद कर नजरबंद रखा गया। जनवरी 1941 में सुभाष अपने घर से भागने में सफल रहे और अफगानिस्तान के रास्ते जर्मनी पहुँच गए। जनवरी 1942 में उन्होंने रेडियो बर्लिन से प्रसारण करना शुरू किया । आज़ाद हिन्द फ़ौज (राष्ट्रीय सेना ) की स्थापना करके युद्ध की तैयारी शुरू कर दी।
मृत्यु –
ऐसा कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु ताईवान में हो गई परन्तु दुर्घटना का कोई सबूत नहीं मिल सका। सुभाष चंद्र कि मृत्यु आज भी विवाद का विषय है और भारतीय इतिहास में सुभाष चंद्र कि मृत्यु रहस्य बना हुआ है।