मदमोहन मालवीय एक महान भारतीय शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी थे। मदमोहन मालवीय को महात्मा गाँधी ने अपना बड़ा भाई कहा, और “भारत निर्माता” की संज्ञा दी। जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें महान आत्मा कहा जिन्होंने आधुनिक भारतीय राष्ट्रीयता की नीव रखी। उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। आज भी वह युवाओं के प्रेरणा के स्त्रोत हैं। ये भारत के पहले तथा अंतिम व्यक्ति थे जिन्हे महामना की सम्मानजनक उपाधि से सम्मानित किया गया।
प्रारंभिक जीवन
मदमोहन मालवीय का जन्म इलाहबाद के एक ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था। इनके पिता का नाम ब्रजनाथ और माता का नाम मूना देवी था। इनके माता-पिता की 7 संतानों में से एक संतान थे। वे अपने माता-पिता से उत्पन्न भाई- बहनो में पांचवें पुत्र थे।
मदमोहन मालवीय का शैक्षिक जीवन
मदमोहन मालवीय की शिक्षा 5 वर्ष की आयु से ही शुरू हो गई थी। इन्हे महाजनी स्कूल भेज दिया गया। इसके बाद वह धार्मिक विद्यालय चले गए। यह इनकी शिक्षा दीक्षा हरदेव जी के मार्गदर्शन में हुई, यहीं से उनकी सोच पर हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रभाव पड़ा। 1868 वर्ष में शासकीय हाई स्कूल में दाखिला लिया।
1879 में उन्होंने मुइर सेन्ट्रल कॉलेज (इलाहबाद विश्वविद्यालय ) से मेट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की। 1884 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी. ए. की शिक्षा पूरी की और 40 रूपये मासिक वेतन पर इलाहाबाद जिले में शिक्षक बन गए। वह आगे एम्. ए. की पढाई करना चाहते थे लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण ऐसा नहीं कर पाए।
वैवाहिक जीवन
मदनमोहन जी का 16 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया था इनका विवाह मिर्जापुर की कुंदन देवी के साथ वर्ष 1878 में हो गया था। इनके पांच पुत्र तथा पांच पुत्रियाँ थी।
कैरियर
मदनमोहन मालवीय के जीवन की शुरुआत 1886 में कलकत्ता में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में भाग लेने के साथ हुई। इसकी शुरुआत अधिवेशन में उनके द्वारा दिए गए भाषण को वहां मौजूद लोगों ने काफी सराहा। मदनमोहन मालवीय के भाषण का असर महाराज श्रीरामपाल सिंह पर पड़ा। श्रीरामपाल सिंह ने मदनमोहन को अपने साप्ताहिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान का सम्पादक बनने और उनका प्रबंधन संभालने की पेशकश की। ढाई वर्ष के सम्पादन के कार्य के बाद एल. एल. बी. की पढाई पूरी की। मदनमोहन मालवीय वर्ष 1912 से 1926 तक इम्पीरियल विधानपरिषद के सदस्य रहे। चोरी चौरा कांड में दोषी बताये गए 177 लोगों को बचाने के लिए न्यायालय में केस लड़ा इन सभी को फांसी की सजा सुनाई गई थी 177 में से 156 लोगों को कोर्ट ने दोषमुक्त घोषित कर दिया। वर्ष 1931 में उन्होंने पहले गोलमेज सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इन्हे सत्य की ही जीत होगी नारे को प्रसिद्ध करने वाले के तौर पर जाना जाता है।
मृत्यु
जीवन के अंतिम वर्षो में बीमारी के चलते मदनमोहन मालवीय का निधन 12 नवंबर 1946 को हुआ था।
विरासत
मदनमोहन मालवीय के नाम पर इलाहाबाद, लखनऊ,दिल्ली,भोपाल और जयपुर में रिहायसी क्षेत्रों को मालवीय नगर का नाम दिया गया। उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी किया।