गुरु गोविन्द सिंह जी सिखों के दसवें तथा अंतिम गुरु थे। गुरु गोविन्द सिंह जी गुरु होने के साथ साथ एक महान योद्धा कवि और दार्शनिक भी थे। गुरु गोविन्द सिंह जी गुरु तेग बहादुर के बलिदान के बाद 11 नवंबर 1675 को दसवें गुरु बने। 1699 को वैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास के लिए महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जी ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरुग्रंथ साहिब को पूरा किया।
प्रारंभिक जीवन
गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना में गुरु तेग बहादुर और उनकी पत्नी गुजरी के घर हुआ । जन्म के समय गुरु गोविन्द सिंह जी का नाम गोविंद राय रखा गया था। उनके पिता सिखों के 9 वे गुरु थे। 1671 में गोविन्द राय ने अपने परिवार के साथ दानापुर से यात्रा की और यात्रा पर ही अपनी बुनियादी शिक्षा प्राप्त करना शुरू कर दिया। उन्होंने फ़ारसी, संस्कृत और मार्शल कौशल सीखा। वह और उसकी माँ आख़िरकार 1672 में आनंदपुर में अपने पिता के साथ जुड़ गए जहां उनकी शिक्षा जारी रही।
योद्धा के रूप में
गुरु गोविन्द सिंह जी ने अन्याय, अत्याचार और पापों को खत्म करने के लिए और गरीबों की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म के लिए पुरे परिवार का बलिदान किया। इन्होने अपने परिवार का बलिदान स्वयं की इच्छा से कर दिया था।
गुरु गोविन्द सिंह जी का वैवाहिक जीवन
गुरु गोविन्द सिंह जी की तीन पत्निया थी। 21 जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के तीन पुत्र हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह। 4 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम अजीत सिंह था। 15 अप्रैल 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनकी कोई संतान नहीं थी पर सिख पंथ के पन्नो पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा।
भेदभाव की भावना की समाप्ति का प्रयास
गुरु गोविन्द सिंह जी ने सभी जातियों के भेदभाव को समाप्त करके समानता स्थापित की। और उनमे भेदभाव की स्थापना स्थापित की।
गुरुबाणी
गुरु गोविन्द सिंह जी ने दमदमा साहिब में अपनी यद् शक्ति और ब्रह्मबल से भी गुरु साहिब का उच्चारण किया और लिखारी (लेखक ) भाई मनी सिंह जी ने गुरुबाणी को लिखा गुरु जी रोज गुरुबाणी का उच्चारण करते थे और श्रद्धालुओं को गुरुबाणी के अर्थ बताते जाते और भाई मणि सिंह जी लिखते जाते। इस प्रकार लगभग पांच महीनो में लिखने के साथ-साथ गुरुबाणी की जुबानी व्याख्या भी सम्पूर्ण हो गई।
गुरु गोविन्द सिंह जी की मृत्यु
1708 में सरहिंद के नवाब वजीर खान ने दो पठानों, जमशेद खान और वासिल बेग को गुरु की हत्या के लिए भेजा था। जमशेद खान ने गुरु को दिल के नीचे घाव कर दिया। घाव का इलाज एक यूरोपीय सर्जन द्वारा किया गया था लेकिन यह कुछ दिनों के बाद फिर से खुल गया और गहरा रक्तस्राव होने लगा। गुरु गोविन्द सिंह को लगा की उनका अंत निकट है और उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। उनका निधन 7 अक्टूबर 1708 को नादेड में हुआ।