तनाव, घबराहट, मूड ऑफ होना या फिर उदासी, यह सब लक्षण जिंदगी में एक बार नहीं आते। यह हर दिन आते जाते रहते हैं। 1 दिन में कई बार आ सकते हैं । इनके आने और जाने की प्रक्रिया चलती रहती है, लेकिन इन वजहों से हमारे काम, हमारा रूटीन, हमारी बॉडी लैंग्वेज, शरीर में ऊर्जा का स्तर ज्यादातर प्रभावित नहीं होता।
जब ऐसे इमोशंस आकर ठहर जाए और किसी के मन में अपना घर बनाने लगे, तो यह दिक्कत की बात है, जिस वजह से हमारे सामान्य काम भी प्रभावित होने लगे या उदासी का स्तर उस जगह तक पहुंचने लगे कि मन के भीतर से ऐसी आवाज आने लगे कि अब कुछ भी ठीक नहीं हो सकता। किसी से बात करने का मन बिल्कुल ना करे। उन सभी चीजों से मन पूरी तरह से हट जाए। जिनमें पहले काफी दिलचस्पी थी।
डिप्रेशन का पूरी तरह से इलाज मुमकिन
रात को नींद उड़ जाए, तो समझ जाइए मामला गड़बड़ है बड़ी बात यह है कि इस तरह से डिप्रेशन का पूरी तरह से इलाज मुमकिन है। शुरुआत काउंसलिंग से हो सकती है और ज्यादा दिक्कत होगी, तो शुगर और बीपी की तरह से दवा और लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ मैनेज किया जा सकता है। अगर हम चाहें तो ज्यादातर बीमारी को गंभीर होने से पहले ही रोक सकते हैं लक्षणों पर ध्यान देकर।
डिप्रेशन भी हमारी ऐसी मानसिक परेशानी होती है। ये उदासी से किस तरह अलग है कब डॉक्टर के पास जाएं ? किन लक्षणों के आने के बाद से टालना खतरनाक हो सकता है क्या इसकी दवा कभी बंद नहीं होती ऐसे ही तमाम अहम सवालों के जवाब देश के बेहतरीन एक्सपर्ट से राय ले कर हम आपको कुछ सुझाव दे रहे हैं।
कैसे होता है डिप्रेशन
हमारे दिमाग पर संदेश पहुंचाने के लिए कुछ न्यूरोट्रांसमीटर होते हैं। इनमें सबसे अहम है सेराटोनिन। यह हमारे मूड को भी रेगुलेट करता है। इतना ही नहीं यह हमारे पाचन तंत्र के लिए भी दिमाग को संदेश पहुंचाता है ऐसा माना जाता है कि सेराटोनिन की कमी से डिप्रेशन की स्थिति बन सकती है। सेराटोनिन की कमी से नींद में भी खलल पड़ सकता है। ज्यादातर दवाई इसी को बढ़ाने के लिए दी जाती है।
सेराटोनिन, डोपामाइन का भी है रोल
सेरोटोनिन के अलावा दूसरे न्यूरोट्रांसमीटर भी अहम काम करते हैं। ऐसा ही एक न्यूरोट्रांसमीटर है डोपामाइन। यह हमारे मिड ब्रेन से निकलता है इसे हैप्पी हार्मोन भी कहते हैं। जब इस हार्मोन की कमी होने लगती है, तो हम ज्यादातर उदास रहने लगते हैं।
इसी तरह हमारी भावनाओं को काबू में रखने के लिए दूसरे न्यूरोट्रांसमीटर हार्मोन है, जब इन हार्मोन स्तर में किसी वजह से कमी आने लगती है तब डिप्रेशन वाली स्थिति बनने लगती है। दिमाग के कौन से भाग से यह हार्मोन निकल रहे हैं और इन हार्मोन्स में कितनी कमी आ रही है। इसी के आधार पर ही डिप्रेशन के मरीज में लक्षण भी उभरते हैं ।
कारण :-
- जेनेटिक यानि परिवार में किसी को पहले हो चुका है इसलिए ऐसे लोग सचेत रहें।
- कोई ऐसी घटना हुआ हो जिसके बाद ऐसा लगे कि अब कोई हल नहीं है अब कुछ नहीं किया जा सकता।
- किसी करीबी के गुजर जाने या दूर जाने से होने वाला खालीपन जो भर ना पाए।
- जॉब या बिजनेस में नुकसान के बाद ऐसा लगे कि अब मैं शायद इससे उबर नहीं पाऊंगा ।
डिप्रेशन के प्रकार :-
इसकी गंभीरता के आधार पर डिप्रेशन को 3 भागों में बांट सकते हैं।
माइल्ड डिप्रेशन
इसे डिप्रेशन की शुरुआत कह सकते हैं। डॉक्टर की जरूरत यहीं से पड़ती है कई बार हम इस स्थिति को हल्के में ले लेते हैं। इसमें ज्यादातर दवा शुरू करने की जरूरत नहीं पड़ती।
मॉडरेट डिप्रेशन
इसे माइल्ड डिप्रेशन के आगे की स्टेज कह सकते हैं लेकिन इसमें लक्षण गंभीर होने लगते हैं। ऐसे में डॉक्टर के पास जाना बहुत जरूरी हो जाता है।
मॉडरेट डिप्रेशन के लक्षण :-
- हर दिन का काम पूरी तरह से डिस्टर्ब हो जाए।
- अपनी ऑफिशियल काम करने में सक्षम ना हो।
- नींद की स्थिति ज्यादा बुरी हो सकती हैं।
- खुद को नुकसान पहुंचाने और खुद खुशी की इच्छा होने लगे।
- जल्दी चिढ़ने लग जाएं या कई बार हिंसक भी होने लगे ।
- बात करने से ही भागने लगे ।
- सेक्स की इच्छा ना के बराबर हो जाए ।
- डिप्रेशन की वजह से ही नशे की भी शुरुआत हो जाए ।
सीवियर डिप्रैशन
जैसे नाम से ही पता चल रहा है कि सीवियर डिप्रेशन में मरीज की स्थिति काफी गंभीर हो जाती है।
सीवियर डिप्रैशन के लक्षण :-
- कुछ भी करने का मन ना करे और ना तो कुछ अच्छा लगे ।
- अपने हर पसंदीदा कार्य से खुद को दूर या अलग करने लगे ।
- प्रोफेशनल जिंदगी भी मरीज की लगभग खत्म हो जाए ।
- एनर्जी लेवल जीरो पर पहुंच जाएं ।
- सेक्स करने की इच्छा भी खत्म होने लगती है ।
डिप्रेशन का असर शरीर के अन्य अंगों पर
- खानपान डिस्टर्ब हो जाता है रूटीन पूरी तरह डिस्टर्ब हो जाता है इसलिए हमारी युमिनिटी सिस्टम भी कमजोर हो जाता हैं।
- शरीर में अन्य विटामिंस तथा मिनरल्स भी कम हो जाते हैं।
- अगर डिप्रेशन के साथ कोई दूसरी बीमारी भी हो तो उसके बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है। अगर कोई दवा सही टाइम पर नहीं ले पाते तो इसका बुरा असर पड़ता है।
- खानपान का ध्यान बिल्कुल भी नहीं रख पाते।
डिप्रेशन के मरीज दवा व काउंसलिंग से नॉर्मल जिंदगी में लौट आते हैं। पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों काम बढ़िया तरीके से निपट जाते हैं। लेकिन इलाज सही ना मिले तो मरीज परिवार और समाज पर एक बोझ के जैसा बन सकते हैं ।